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देवता: विश्वेदेवा: ऋषि: ऋजिश्वाः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः

यो वो॑ देवा घृ॒तस्नु॑ना ह॒व्येन॑ प्रति॒भूष॑ति। तं विश्व॒ उप॑ गच्छथ ॥८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yo vo devā ghṛtasnunā havyena pratibhūṣati | taṁ viśva upa gacchatha ||

पद पाठ

यः। वः॒। दे॒वाः॒। घृ॒तऽस्नु॑ना। ह॒व्येन॑। प्र॒ति॒ऽभूष॑ति। तम्। विश्वे॑। उप॑। ग॒च्छ॒थ॒ ॥८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:52» मन्त्र:8 | अष्टक:4» अध्याय:8» वर्ग:15» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:5» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर अध्यापक और अध्ययन करनेवाले परस्पर कैसे वर्त्ताव करें, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देवाः) पढ़ाने और उपदेश करनेवाले विद्वानो ! (यः) जो (घृतस्नुना) घृत के समान शुद्ध (हव्येन) लेने-देने योग्य वा प्रशंसित पढ़ने और सुनने से (वः) तुम लोगों को (प्रतिभूषति) प्रत्यक्षता से सुभूषित करता है (तम्) उसके (विश्वे) सब तुम लोग (उप, गच्छथ) समीप प्राप्त होओ ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जो सत्य विद्यादान से सब तुम लोगों को सुभूषित करता है, उसे तुम सब प्रतिभूषित करो अर्थात् बदले में सुशोभित करो ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरध्यापकाऽध्येतारः परस्परं कथं वर्तेरन्नित्याह ॥

अन्वय:

हे देवा ! यो घृतस्नुना हव्येन वः प्रतिभूषति तं विश्वे यूयमुप गच्छथ ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (वः) युष्मान् (देवाः) अध्यापकोपदेष्टारः (घृतस्नुना) घृतमिव शुद्धेन (हव्येन) आदातुं दातुमर्हेण प्रशंसितेनाऽध्ययनेन श्रवणेन वा (प्रतिभूषति) प्रत्यक्षतयाऽलङ्करोति (तम्) (विश्वे) सर्वे (उप) (गच्छथ) ॥८॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्या ! यः सत्येन विद्यादानेन सर्वान् युष्मान् भूषयति तं यूयं प्रतिभूषत ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! जो सत्य विद्येने तुम्हाला विभूषित करतो त्याला तुम्ही प्रतिभूषित करा. ॥ ८ ॥